हिंदू धर्मग्रंथों में मुहूर्त का विशेष महत्त्व है
भारतीय ज्योतिष शास्त्र और हिंदू धर्मग्रंथों में मुहूर्त का विशेष महत्त्व है। हममें से अधिकांश लोग कोई भी शुभ काम करने से पहले मुहूर्त अवश्य निकलवाते हैं। आखिर यह मुहूर्त है क्या? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मुहूर्त एक ऐसी तालिका है, जो खगोलीय स्थिति के आधार पर दिन के 24 घंटों की दशा बताती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दिन के 24 घंटों में 30 मुहूर्त होते हैं । दिन-रात का 30वाँ भाग मुहूर्त कहलाता है यानी 2 घड़ी या 48 मिनट का कालखंड एक मुहूर्त कहलाता है। सूर्योदय के पूर्व के प्रहर में मुहूर्त होते हैं। ब्राह्ममुहूर्त रात का चौथा प्रहर होता है। सूर्योदय के पूर्व के प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं। इनमें से पहले मुहूर्त को ब्राह्ममुहूर्त और बाद
वाले को विष्णुमुहूर्त कहते हैं। इस समय सुबह तो हो जाती है, पर आकाश में सूर्य पूरी तरह से दिखाई नहीं देता। ब्राह्ममुहूर्त कई दृष्टिकोण से बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। सूर्योदय के डेढ़ घंटे पहले का मुहूर्त ब्राह्ममुहूर्त ( Good Morning ) कहलाता है।
सही-सही कहा जाए तो सूर्योदय के 2 मुहूर्त पहले या सूर्योदय के 4 घटिका पहले का मुहूर्त। एक मुहूर्त की अवधि 48 मिनट होती है। अतः सूर्योदय के 96 मिनट पूर्व का समय ब्राह्ममुहूर्त होता है। दिन और रात का चक्र 24 घंटे में पूरा होता है। इन 24 घंटों में हर 48वें मिनट में मुहूर्त बदलता है। दिन और रात के इन 24 घंटों में कुल 30 मुहूर्त होते हैं और ये मुहूर्त बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं। विशेषकर तब, जब हम कोई नई शुरुआत करने जा रहे होते हैं।
ब्राह्ममुहूर्त में कार्य करने से अप्रत्याशिक सफलता मिलती है
इस समयावधि में कुछ कालखंड ऐसे होते हैं, जिनमें कार्य करने से अप्रत्याशिक सफलता मिलती है तो कुछ ऐसे होते हैं, जिनमें कार्य आरंभ होने से लाख कोशिशों के बाद भी बात नहीं बनती है। का इन्हीं मुहूर्तों में एक मुहूर्त ऐसा भी होता है, जिसे भक्ति, ध्यान और ज्ञानार्जन के अनुसार बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह देवताओं के भ्रमण का समय होता है।
इस मुहूर्त के दौरान वायु में अमृत की धार बहती है, जिसके दौरान बाहर व भीतर एक असीम शांति रहती है। इस मुहूर्त को कहते हैं- ब्राह्ममुहूर्त | ब्राह्ममुहूर्त को धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरह से बहुत महत्त्व का बताया जाता है। धार्मिक रूप से जहाँ वेद-शास्त्रों तक में ब्राह्ममुहूर्त ( Madhur Morning ) में उठने के लाभ बताए गए हैं तो वहीं विज्ञान भी इस समय ने को शारीरिक और बौद्धिक विकास के लिए बहुत अच्छा बताता है।
ऋग्वेद 1/125/1 में कहा गया है कि-
प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति
तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते ।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू
रायस्पोषेण सचते सुवीरः ॥
अर्थात सूर्योदय से पहले उठने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इस कारण समझदार लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गँवाते। जो सुबह जल्दी उठते हैं, वे स्वस्थ, सुखी, ताकतवर व दीर्घायु होते हैं। इसी तरह सामवेद मंत्र 1351 में भी लिखा है कि- यदद्य सूर उदितेऽनागा मित्रो अर्यमा । सुवाति सविता. भगः ॥
अर्थात सूर्योदय से पहले उठकर शौच व स्नानादि से निबटकर भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस समय की शुद्ध और स्वच्छ हवा स्वास्थ्य, संपत्ति में वृद्धि करने वाली होती है। इसी प्रकार अथर्ववेद में भी कहा गया है कि सूर्योदय के बाद भी जो नहीं उठते, उनका तेज खतम हो जाता है। भारतीय संस्कृति में ब्राह्ममुहूर्त में उठने की बड़ी महत्ता है। भगवान मनु ने कहा है- ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत, धर्मार्थी चानुचिन्तयेत् । अर्थात ब्राह्ममुहूर्त में प्रबुद्ध होकर धर्म और अर्थ का चिंतन करना चाहिए। ब्राह्मे मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी । अर्थात ब्राह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्यों का नाश करने वाली है।
ब्राह्ममुहूर्त में उठने वाला पुरुष सौंदर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु प्राप्त करता है
आयुर्वेद में भी ब्राह्ममुहूर्त में जागरण से दिनचर्या के आरंभ का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है।
“वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मिं स्वास्थ्यमायुश्च विन्दति । ब्राह्मे मुहूर्ते सञ्जाग्रच्छ्रियं वा पङ्कजं यथा ।”
अर्थात ब्राह्ममुहूर्त में उठने वाला पुरुष सौंदर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु आदि वस्तुओं को वैसे ही प्राप्त करता है, जैसे कमल प्राप्त करता है। भोर का अर्थ सुबह-सवेरे से है। सवेरा (सूर्योदय से पहले का समय) भोजपुरी में बिहान को कहते हैं। भोर शब्द ब्राह्ममुहूर्त के काल को कहा जाता है। सूर्योदय से पहले जब वातावरण पूरी तरह शांत होता है; जब मुरगा बाँग देता है और पंछियों का कलरव गूँजता है— आम बोलचाल की भाषा में उसी समय को भोर या बिहान कहा जाता है। दूसरे अर्थ भोर को रात्रि प्रहर और उजाले के बीच का मिलन बिंदु भी कह सकते हैं।
एक कवि कहता है कि
‘उठ जाग मुसाफिर भोर भयो,
अब रैन कहाँ जो सोवत है।’
जीवन में सुखद और बेहतर नतीजों की प्राप्ति
जीवन में सुखद और बेहतर नतीजों की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन एक खास वक्त में जागना बहुत ही शुभ माना गया है। यह विशेष समय ही ब्राह्ममुहूर्त कहलाता है।
दरअसल ब्राह्ममुहूर्त का धार्मिक, आध्यात्मिक, मानसिक व शारीरिक सभी नजरिए से बहुत महत्त्व माना गया है। ऋषि-मुनियों, योगगुरुओं के अनुसार अगर कोई भी इनसान जीवन के हर क्षेत्र में मनोवांछित परिणाम चाहता है तो वह नित्य ब्राह्ममुहूर्त में जागना शुरू करे- उसे निश्चित ही बेहतर नतीजे प्राप्त होंगे। बोलचाल की भाषा में ब्राह्ममुहूर्त का समय सुबह सूर्योदय से पहले चार-पाँच बजे के बीच का माना जाता है, किंतु हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार रात के आखिरी पहर का तीसरा हिस्सा या चार घड़ी तड़के तक ही ब्राह्ममुहूर्त होता है। ब्राह्ममुहूर्त में जागकर अपने इष्टदेव का ध्यान, पूजा, अध्ययन और किन्हीं भी शुभ कर्मों को करना बहुत ही शुभ होता है।
कहते हैं कि:
इस समय ईश्वर-ज्ञान, विवेक, सुख, शांति, सद्बुद्धि, नीरोग और सुंदर शरीर प्रदान करते हैं। इस समय भगवान की पूजा-अर्चना के बाद दही, घी, आईना, अपने माता-पिता, बच्चों और फूलमाला के दर्शन भी बहुत पुण्य प्रदान करते हैं। ब्राह्ममुहूर्त के समय संपूर्ण वातावरण में शांति और पवित्रता व्याप्त होती है। माना जाता है कि इस समय आकाश में देवी-देवता भ्रमण करते हैं। इस समय सत्त्वगुण की प्रधानता रहती है और देवताओं के आवाहन और पूजन से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। इस समय सभी मंदिरों के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, ताकि देवता अपना स्थान ग्रहण करें। इसी समय उनके शृंगार और पूजन का प्रावधान किया जाता है। ब्राह्ममुहूर्त में उठने से जातक को बल, बुद्धि, विद्या, सौंदर्य और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
आयुर्वेद के अनुसार यदि हम ब्राह्ममुहूर्त में उठकर टहलने जाते हैं तो हमारे शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। इसका कारण यह है कि इस समय चलने वाली वायु पूरी तरह निर्मल और प्रदूषणरहित होती है। यह शुद्ध वायु हमारे शरीर के कण-कण को जीवंत करती है।
ब्राह्ममुहूर्त का समय अध्ययन के लिए भी अति उत्तम
ब्राह्ममुहूर्त का समय अध्ययन के लिए भी अति उत्तम माना जाता है। विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए भी यह समय अनुकूल माना जाता है। कारण यह है कि रात भर नींद और विश्राम से तरोताजा हुए मन-मस्तिष्क सुबह पूरी ऊर्जा के साथ पढ़ाई में लगते हैं। इसी के साथ हर तरफ फैली हुई शांति मन को भटकने भी नहीं देती और एकाग्रता से पढ़ाई करना संभव हो पाता है। पढ़ाई के लिए ब्राह्ममुहूर्त से बेहतर कोई दूसरा समय हो ही नहीं सकता। इस समय वातावरण की शांति, तन-मन की ताजगी, शांत मस्तिष्क और ताजी हवा सब मिलकर विद्यार्थी के लिए एकाग्रता से पढ़ाई करना संभव बनाते हैं। इस समय याद किया गया पाठ मस्तिष्क में अंकित हो जाता है और लंबे समय तक याद रहता है।
ब्राह्ममुहूर्त जीवन के हर पहलू पर अपना सकारात्मक प्रभाव डालता है। इस समय किया गया हर सही कार्य कई गुना फल देता है। वैसे तो जीवन के कर्म के प्रकारों का कोई अंत नहीं है, पर कुछ काम ऐसे हैं, जो ब्राह्ममुहूर्त में किए जाएँ तो दिन के किसी भी समय की अपेक्षा अधिक फल देते हैं। ध्यान के लिए भी सबसे सटीक समय ब्राह्ममुहूर्त का होता है। इस समय वातावरण शांत होता है, वायु निर्मल और शुद्ध होती है तथा मन को भटकाने के अवरोध नहीं होते हैं। इस समय पूर्ण एकाग्रता से किया गया ध्यान आत्मिक शुद्धि में सहायक होता है, जिसका सीधा प्रभाव साधक के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर तुरंत ही देता है।
ब्राह्ममुहूर्त का समय पूजा-पाठ, प्रार्थना के लिए सर्वाधिक अनुकूल
ब्राह्ममुहूर्त का समय पूजा-पाठ, प्रार्थना के लिए सर्वाधिक अनुकूल माना जाता है। इस समय देवी-देवता स्वयं भ्रमण करते हैं, तो वे हमारे द्वारा किया गया आह्वान स्वयं ग्रहण कर सहस्र गुना फल देते हैं। ब्राह्ममुहूर्त में हम वैदिक रीति से संध्यावंदन भी कर सकते हैं। इस समय विधि-विधान से किया गया संध्यावंदन सहस्र गुना फलदाई होता है। यदि हमारी धर्म में रुचि न भी हो, तो भी हमें बेहतर स्वास्थ्य के लिए ब्राह्ममुहूर्त में टहलना चाहिए। किसी भी दवा के मुकाबले यह भ्रमण हमारे जीवन में आई हर स्वास्थ्य समस्या का अंत सकारात्मक प्रभाव से करेगा।
ब्राह्ममुहूर्त में किसी भी तरह की नकारात्मकता को जीवन में प्रवेश नहीं करने देना चाहिए। इस समय किसी भी प्रकार के वार्त्तालाप, बहस, तनाव, झगड़े से बचना चाहिए। इस समय भोजन, यात्रा, संभोग, मादक द्रव्यों के सेवन आदि को भी निषिद्ध माना गया है। ब्राह्ममुहूर्त में शांति का साम्राज्य रहता है तो किसी भी हालत में उसे खंडित न करें। ब्राह्ममुहूर्त में ऐसा कोई काम न करें, जिससे शोर-शराबा हो; क्योंकि वातावरण की शांति ही इस समय की विशेषता है और विशेष फलदायी भी है।
ब्राह्ममुहूर्त में वेदमंत्रों के उच्चारण से वातावरण बहुत शुद्ध हो जाता है और परिणामस्वरूप मन को असीम शांति एवं पुण्य की प्राप्ति होती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्री हनुमान माता सीता को ढूँढ़ते हुए ब्राह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुँचे थे, जहाँ पर उन्होंने वेदों के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी थी और उनका मन प्रफुल्लित हो गया था।
अच्छी सेहत, मानसिक एवं शारीरिक दृढ़ता पाने के लिए भी ब्राह्ममुहूर्त सबसे उपयुक्त समय है; क्योंकि इस समय वातावरण में प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। इससे व्यक्ति का पूरा शरीर शुद्धता और ऊर्जा से भर जाता है। उसका दिमाग भी शांत और स्थिर रहता है। व्यक्ति को न केवल निरोगी शरीर प्राप्त होता है, वरन उसकी आयु में भी वृद्धि होती है। इस तरह युवा पीढ़ी आलस्य के कारण देर तक सोने के बजाय इस खास वक्त का फायदा उठाकर बेहतर सेहत, सुख, शांति और नतीजों को पा सकती है।
ब्राह्ममुहूर्त के समय वायुमंडल प्रदूषणरहित होता है
वैज्ञानिक शोध अध्ययन बताते हैं कि ब्राह्ममुहूर्त के समय वायुमंडल प्रदूषणरहित होता है। इस समय वायुमंडल में प्राणवायु यानी ऑक्सीजन की मात्रा सबसे अधिक होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि और मस्तिष्क को ऊर्जा देने के लिए बहुत जरूरी होती है। वहीं जब हम इस समय नींद से जागते हैं तो मस्तिष्क में एक स्फूर्ति व ताजगी होती है। इसका असर हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य पर दिखाई देता है। शास्त्रों में सुबह के सुकून भरे वक्त में जीवन को साधने के लिए ही स्नान का बड़ा महत्त्व बताया गया है। यहाँ तक कि रोग या किसी लाचारी में भी कई विकल्पों के साथ स्नान करना तन ही नहीं, मन के कलहरूपी ताप को भी कम करने वाला बताया गया है। इस तरह ब्राह्ममुहूर्त का समय अनेकों लाभों को प्रदान करने वाला है।