पंचतत्त्वों में आवश्यक है संतुलन
पर्यावरण से हमारा जीवन जुड़ा हुआ है और पर्यावरण की यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है
पंचतत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) पर्यावरण- दोनों ही इस समय प्रदूषण की मार को बुरी तरह समाहित हैं, जिनसे मिलकर हमारा शरीर बना हुआ है। से झेल रहे हैं, जिसके कारण हमारी प्रकृति व पर्यावरण में गोस्वामी जी कृत श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम कहते नित नए एवं भाँति-भाँति के उचटित हो रहे हैं।
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अतिअधम सरीरा॥”
अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु-इन पाँच तत्त्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है। हमारी प्रकृति व पर्यावरण में भी ये पाँच तत्त्व मुख्य रूप से घुले हुए हैं। यदि इन तत्त्वों में प्रदूषण होता है तो इससे न
केवल हमारा पर्यावरण दूषित होता है, बल्कि हमारे शरीर व मन भी अस्वस्थ व रोगी बनते हैं। इस समय धरती पर सबसे बड़ा संकट जलसंकट है, जलसंकट के कारण भूगर्भ का जलस्तर बहुत कम हो गया है, इसके साथ ही वर्षा ऋतु के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में नदी-तालाबों व झरतों में भी जल का स्तर बहुत कम हो जाता है। वर्तमान में का जल भी प्रदूषित हो गया है। कई तालाब आदि भी सूख गए हैं।
जलसंकट के साथ ही बल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का जो तापमान बढ़ रहा है, उससे ध्रुवों में जमी हुई बरफ धीरे-धीरे पिचल रही है. समुद्र का जलस्तर अगर एक निश्चित मानतो उससे समुद्रतट पर बसे हुए शहर जलमग्न हो जाएं बचा। वातावरण में ऊष्मा बढ़ने से ग्रीष्म ऋतु में प्रातः कमलों में आग लगा जाती हैं, जो अत्यंत भयंकर होती है तथा उनके कारमा हमारी बहुत सारी वनस्पतियों, जीव जाते हैं। प्रकृति में घुले हुए ये पंचतत्त्व आपस में घुले-मिले हैं, एकदूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें से किसी भी तत्त्व में आया हुआ संतुलन अथवा असंतुलन दूसरे तत्त्व को प्रभावित करता है।
किसी भी तत्त्व में कमी या वृद्धि दूसरे तत्त्व को प्रभावित करती है। इसी तरह किसी भी तत्त्व में प्रदूषण व्याप्त होने पर वह अन्य दूसरे तत्त्व को प्रभावित करता है। ठीक इसी प्रकार यदि हमारे शरीर में पंचतत्त्वों में से किसी
भी तत्त्व में वृद्धि या कमी होती है तो उससे संबंधित रोग शरीर में पनप जाते हैं, जैसे- शरीर में वायु तत्त्व की अधिकता से वातरोग पनपते हैं व वायु तत्त्व के असंतुलन से शरीर की क्रियाविधि में गड़बड़ी पैदा होती हैं। अग्नि की अधिकता से अम्लता या एसिडिटी होती है व अग्नि की कमी से मंदाग्नि होने से ग्रहण किया गया भोजन ठीक से नहीं पचता। पृथ्वी तत्त्व की अधिकता से मोटापा हो जाता है और पृथ्वी तत्त्व की कमी से शरीर दुर्बल
हो जाता है। जल तत्त्व की अधिकता से शरीर के किन्हीं अंगों में पानी भर जाता है व जल तत्त्व की कमी से शरीर में सूखापन प्रतीत होता है। आकाश तत्त्व की अधिकता से अंगों में दरद होता है व आकाश तत्त्व की कमी से बहरापन, हड्डियों के जोड़ के लचीलेपन में कमी आदि होती है।
इस तरह पंचतत्त्वों में संतुलन बहुत जरूरी है, चाहे वह शरीर की बात हो या हमारे पर्यावरण की। वर्तमान समय
पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई वा ऋतु में मिट्टी का कटाव होने से भूमि व्यंजर हो रही हैं, वह वर्मा ऋतु के जल को अवशोधित नहीं कर पा रही हैं। पेड़-पौधों को कमी होने से समय पर भी कहीं हो रही है, क्योंकि पेड़-पौधे ही बादलों को व्यरिश करने के लिए आकर्षित
करते हैं। इसके साथ ही हरियाली में कमी होने से वातावरण में प्रदूषक तत्वों को वृद्धि हो रही है, क्योंकि पेड़-पौधों की हरियाली वातावरण के प्रदूषक तत्त्वों को सोख लेती है और उसे स्वच्छ बनाती है। इस तरह यदि हमें अपने पर्यावरण को बचाना है, तो
इसकी शुरुआत जल तत्त्व से करनी होगी; क्योंकि यदि हमारे पर्यावरण में जल नहीं होगा तो जीवन भी नहीं बचेगा। किसी भी ग्रह में जीवन की खोज करने के लिए वहाँ सबसे पहले जल तत्त्व को खोजा जाता है। यदि वहाँ जल तत्त्व की मौजूदगी है, तो वहाँ भी जीवन संभव होने के आसार होते
हैं। जल तत्त्व के कारण ही हमारी विभिन्न संस्कृतियाँ व सभ्यताएँ प्राय: नदियों के किनारे ही पुष्पित-पल्लवित हुईं और इसीलिए यदि हमें अपने पर्यावरण को बचाना है, उसे सुरक्षित करने में योगदान देना है, तो सबसे पहले हमें अपनी प्रकृति व पर्यावरण में मौजूद जल तत्त्व को सँभालना होगा, उसे सुरक्षित करना होगा, स्वच्छ करना होगा और उसका संग्रह करना होगा। जल तत्त्व से ही भूमि में नमी आएगी, इससे भूमि में
वृक्ष-वनस्पतियाँ पनपेंगी, हरियाली बढ़ेगी। हरियाली बढ़ने से वातावरण में निरंतर बढ़ती हुई ऊष्मा व अन्य प्रदूषक तत्त्व पेड़-पौधों में अवशोषित होंगे, पेड़-पौधों की पत्तियों के भूमि पर गिरने से व खाद-पानी से उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ेगी, वातावरण में हरियाली बढ़ने व जल तत्त्व के संतुलन से अग्नि व आकाश तत्त्व भी संतुलित हो जाएँगे। के जल तत्त्व को बचाने की ओर अपना ध्यान देना होगा, इस तरह पर्यावरण को बचाने के लिए हमें प्रकृति इसके साथ ही धरती में हरियाली बढ़ने से अन्य तत्त्व अपने आप ही संतुलित हो जाएँगे, बस, हमें इसमें अपना सहयोग देना होगा। पेड़-पौधों की यदि सुरक्षा की जाए, तो वो भी हमारे जीवन को सुरक्षित करेंगे व हमें स्वस्थ रखने में अपना सहयोग देंगे। इस तरह पंचतत्त्वों का संतुलन ही पर्यावरण को संतुलित बनाने का कार्य संपन्न कर सकता है।