Sanatan-Dharma-Sanskriti

सनातन धर्म क्या है 

धर्म क्या है

सनातन धर्म को जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि धर्म क्या है धर्म की परिभाषा देश और काल के अनुसार अलग-अलग होती है 
आपके सामने कोई पाप कर्म करता है तो उसे सजा देना या उसका अंत करना धर्म है, दूसरी तरफ अगर कोई दुखी व्यक्ति या 
बीमार व्यक्ति आपके सामने उपस्थित है तो उसकी सेवा करना आपका परम धर्म है । इसलिए धर्म हर व्यक्ति मात्र का अलग होता है ।

सनातन धर्म क्या है (Since Vedic period)

क्या धर्म वाकई हिंदू मुसलमान सिख या ईसाई होता है

जैसा कि सनातन धर्म की  परिभाषा कहती है यह सभी संप्रदाय हैं धर्म सिर्फ और सिर्फ एक होता है वह वह पूरे मानव मात्र मात्र पूरे मानव मात्र के लिए एक ही तरह काम करता है ।

अगर कोई तकलीफ में है तो उसकी मदद करनी चाहिए मुझे नहीं लगता इसमें किसी संप्रदाय विशेष के लिए कोई अलग नियम होगा दूसरी ओर अगर आपको कोई नुकसान पहुंचाना चाहता है तो उसको जवाब देना उस पर आघात करना या उसका वध कर देना आपका धर्म है ।

 

सनातन शब्द का अर्थ

‘सनातन’ शब्द का अर्थ है ‘सदा एक सा रहने वाला’। इसोलिये ईश्वर को भी ‘सनातन’ कहते हैं। सनातन धर्म काअर्थ है वह धर्म या नियम जो कभी बदलें नहीं,

सदा एक.से रहे।

अथर्ववेद में ‘सनातन’

सनातनमेनमाहुरताय स्यात् पुनण्वः ।

अहोरात्रे प्रजायेते अन्यो अन्यस्य रूपयोः ॥

अथर्व वेद १० | ८ | २३ )

सनातन उसको कहते हैं जो कभी पुराना न हों सदा नया रहे। जैसे रात दिन का चक्र सदा नया रहता है। इसके कुछ उदाहरण लीजिये। जो नियम सदा एक से रहें वे सनातन है, जैसे दो और दो चार होते हैं, यह सनातन धर्म है क्या कि किसी युग में या किसी देश में यह बदल नहीं सकता।

धर्म या नियम दो प्रकार के होते हैं एक सनातन और दूसरे सामयिक ! सनातन बदलता नहीं। सामयिक बदलता है। जैसे जाड़े मे गर्म कपड़ा पहनना चाहिये। या ज्वर आने पर दवा खानी चाहिये | भोजन करना सनातन धर्म है क्योंकि किसी युग में भी बिना भोजन के शरीर की रक्षा नहीं हो सकती। लेकिन दवा खाना सनातन धर्म नहीं। यह तो कभी बीमार होने पर ही काम में आता है।

 

धर्म के दो रूप होते हैं। एक तो मूल तत्व जो सदा एक से रहते है और दूसरी रस्मो रिवाज ( Ceremonials ) जो देश और काल के विचार से बदलते रहते हैं। जैसे किस समय कैसे कपड़े पहनना । यह रिवाज के अनुकूल होता है। यह धर्म का मुख्य अंग नहीं है। बहुत से लोग मौलिक या असली धर्म और रिवाज या सामयिक धम’ को मिलाकर गड़बड़ कर देते हैं। इसीलिये बहुत सा भ्रम उत्पन्न हो जाता है।

जैसे शुद्ध पानी दूर तक बहते बहते गदला हो जाता है इसी प्रकार सनातन धर्म का हाल है। इसमें कुछ तो भाग सनातन है और कुछ पीछे की मिलावट है। सब को सनातन धर्म कहना भूल है ।

महर्षि दयानन्द ने जिस धर्म का प्रचार किया है वह शुद्ध सनातन वैदिक धर्म है। सनातन धर्म के मूल तत्वों में कोई भेद भाव नहीं होना चाहिये। और बुद्धिमान लोग ऐसा ही मानते हैं। कुछ निबुद्धि लोग रस्मो रिवाज के भेद को बढ़ाकर परम्पर द्वेष फैलाना चाहते हैं। यह ठीक नहीं । धर्म में बहुत सी बातें पीछे से मिला दी गई है, उनको छोड़ देना चाहिये। जैसे गंगाजल गंगोत्तरी पर शुद्ध और पवित्र होता है परन्तु हुगली नदी तक पहुँचते पहुँचते गदला हो जाता है। उसको छान कर मिट्टी निकाल देनी चाहिये इसी प्रकार पुराने वैदिक धर्म में जो गड़बड़ पोछे से मिला दो गई उसको भी शुद्ध करने की जरूरत है।

भारत में सनातन संस्कृति क्या है ( What is Sanatan Dharma )

Post navigation