Search-of-God

सृष्टि में भगवान प्रत्यक्ष रूप से भी हैं जो कि सृष्टि का आधार हैं। अगर सूर्य
कुछ दिन न निकले तो क्या होगा? अगर बारिश न हो तो क्या होगा? अगर वायु न
हो तो क्या होगा? अगर समुद्र अपनी सीमाओं को तोड़ दे तो क्या होगा? अगर
चन्द्रमा का आकर्षण न हो तो समुद्र में ज्वारभाटा कैसे आएगा? जो प्रत्यक्ष देव हैं
अर्थात जीवन का आधार जितने भी अंग हैं उनको ऋषि-मुनियों ने जाना और मंत्रों
की खोज करके मंत्रों के द्वारा सृष्टि के महत्वपूर्ण क्रिया-कलापों को सुचारू रखने के
लिए यज्ञ की खोज की। अब देखिए यज्ञ की सभी आहूतियों में प्राणी मात्र के
कल्याण की भावना निहित है इसमें किसी मजहब अथवा व्यक्तिविशेष के हित की
कोई साधना नहीं है। जो भी प्रकृति से प्राप्त शुभ सामग्री हम अग्नि के माध्यम से
पुनः प्रकृति को अर्पित करते हैं उससे सृष्टि का कल्याण होता है और परमात्मा की
प्राप्ति होती है। दूसरों की भलाई में ही हमारी भलाई छिपी हुई है। प्राणी मात्र के
कल्याण में ही हमारा कल्याण छिपा हुआ है। सृष्टि के कल्याण में ही हमारा जीवन है।
और धर्म यज्ञ हमें मात्र अपना कल्याण न करके प्राणी मात्र के कल्याण का रास्ता
दिखाकर जीवन का सर्वोच्च कर्म करवाता है जिसमें निश्चित तौर पर आत्मा का
परमात्मा के साथ मिलन निहित है। मैं आपको परमात्मा से मिलने के कुछ शार्टकट बताता हूं।

जब आप के पेट में प्रेशर बन रहा हो और बड़ी मुश्किल से आपको कहीं
फ्रेश होने की जगह मिले तो आप महसूस करेंगे कि फ्रेश होते ही आपको परमात्मा
महसूस हो जाएंगे। इसी तरह से चाहे वह मूत्र का वेग हो अथवा भूख का वेग हो
किसी भी तरह का वेग हो आप कुछ क्षण के लिए परमात्मा को
महसूस करते हैं लेकिन बाद में भूल जाते हैं। जब आपके शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं
तो आपको परमात्मा महसूस होते हैं। इसी प्रकार आप अपनी आत्मा की गंदगी को
जिस दिन बाहर करेंगे आपको परमात्मा प्रत्यक्ष महसूस होने लगेंगे। परमात्मा हर
जीव में है बस उसको देखने का नजरिया चाहिए। लेकिन हम परमात्मा को हर जीव
में इसलिए नहीं देखना चाहते क्योंकि हमारा स्वार्थ इस बात के लिए मना करता है।
अगर एक दुकानदार अपने ग्राहक में ईश्वर को देखेगा तो ग्राहक से बेईमानी नहीं
कर पाएगा। इसी तरह कोई भी व्यक्ति प्रत्येक जीव में ईश्वर को देखेगा तो उसे
अपना स्वार्थ त्यागना पड़ेगा, जिसे कोई भी नहीं त्यागना चाहता। इसलिए व्यक्ति
को ईश्वर के दर्शन नहीं होते और वह ज्ञान की खोज में इधर-उधर मजहबों की
दुकानों में भटकता रहता है।

क्या भगवान प्रत्यक्ष में भी नजर आते हैं

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