अध्यात्म ( Spirituality )और विज्ञान
अध्यात्म और विज्ञान एकदूसरे के परिपूरक हैं। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते। इन दोनों के पारस्परिक अन्योन्याश्रित सहयोग पर ही इस धरती का भविष्य भी टिका है। अध्यात्म एक उच्चस्तरीय विज्ञान है। समस्त ब्रह्मांड में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो भौतिक एवं अध्यात्म दोनों ही विधाओं का सर्जक, पोषक एवं व्यवहारकर्त्ता है। मनुष्य अध्यात्म और विज्ञान के बीच की कड़ी है। मनुष्य की देह के परे इंद्रियाँ, इंद्रियों के परे मन, मन के परे बुद्धि तथा बुद्धि के परे सूक्ष्मशरीर व आत्मा हैं।
ये सभी अंग प्रत्येक कार्य, व्यवहार एवं गुण-दोष के आधार पर एकदूसरे से भिन्न होने पर भी परस्पर जुड़े होते हैं। शरीर व इंद्रियाँ मन और बुद्धि के अनुरूप भौतिक कार्यों में लगे रहते हैं। सूक्ष्मशरीर व आत्मा आध्यात्मिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। चेतना का परिष्कार ही अध्यात्म है। अध्यात्म की कल्पना उस कामधेनु के रूप में की जाती है, जिसका दूध वेदरूपी ज्ञान-विज्ञान हैं।
स्वाध्याय के माध्यम से इस ज्ञान-विज्ञानरूपी दुग्ध का सेवन किया जा सकता है। स्वाध्याय से ज्ञान एवं विवेक की जाग्रति होती है और ऊर्जा की प्राप्ति होती है। चूँकि सामान्य जन इस ज्ञानरूपी दुग्ध को पचाने में असमर्थ होते हैं, इसीलिए शास्त्रों और पुराणों को स्मृतियों के रूप में सहज एवं सरल सिद्धांतों को दधि के रूप में संगृहीत किया। इस दधि का मंथन भगवान श्रीकृष्ण ने किया और गीता के रूप में समस्त संसार के समक्ष पेश किया। अध्यात्म और विज्ञान के इस अद्भुत मिलन को सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों ने सहज रूप में स्वीकार किया है।
आध्यात्मिक चेतना ( Spiritual Consciousness)
मानव मन और प्राण से ऊँची चेतना है। यह चेतना शुद्ध महान एवं दिव्य है तथा जो मानव की सामान्य मानसिक, प्राणिक प्रवृत्तियों से परे है, वह अध्यात्म कहलाता है। आत्मा के भीतर उठती हिलोर जब निम्न: भावों की क्षुद्रता से निकलकर किसी अदृश्य चेतना की ओर बढ़ती है-तब मनुष्य उस महत्तर चेतना के प्रति जागरूक होना प्रारंभ कर देता है। अध्यात्म में प्रविष्ट होने के लिए हृदय की पवित्रता आवश्यक है। इसके लिए आत्मा में सच्ची अभीप्सा जाग्रत : करनी होती है।
वैसे तो अनंत और असीम के आध्यात्मिक सत्य में पूरी तरह प्रवेश कर पाना संभव नहीं है, फिर भी अंतस् चेतना जाग्रत होने के बाद दिव्यता एवं पावनता का अनुभव होता है। यह भाव व्यक्तिगत मानदंडों से उच्च होता है। इसे तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। सबसे नीचे है शारीरिक जीवन, जो आवश्यकताओं और कामनाओं से बँधा है। मध्य में है मानसिक यानी उच्चतर भावों का जीवन, जो महत्तर अभिरुचियों, अभीप्साओं, अनुश्रुतियों और विचारों: से सराबोर है।
शिखर है- गहनतर चैत्य और आध्यात्मिक स्थिति। बनाकर ग्राह्य बनाया गया। कालांतर में जब लोगों में उनके प्रति अश्रद्धा जगने लगी तो मनीषियों ने उसे विज्ञान की कसौटी आध्यात्मिक जीवन में जब चेतना की पर कसा। ऋषियों ने उपनिषद् के नाम से उन अभिव्यक्ति होती है तो इच्छाएँ, वासनाएँ लुप्त होने लगती हैं। इसके बाद आत्मा परमात्मा से तादात्म्य कर लेती है। अनंत का विशाल स्वरूप उसमें उमड़ने-घुमड़ने लगता है। सदियों पूर्व से भारत का आदर्श अध्यात्म पर आधारित रहा है।
अध्यात्म का आदर्श भी विज्ञान से संबंधित है। यदि अध्यात्म के आदर्श के साथ मानव की वैज्ञानिक उपलब्धियों को भी समाहित कर लिया जाए तो नवीन आयाम प्रस्तुत किए जा सकते हैं। संपूर्ण विश्व में देश को इस क्षेत्र में अपना स्थान सुनिश्चित करने के लिए अध्यात्म के साथ आधुनिकतम शोध एवं अनुसंधानों को भी साथ
लेकर चलना चाहिए । पश्चिम के आदर्श हैं – प्रगति, स्वाधीनता, समानता, अर्थ एवं उपभोग। ये सभी विज्ञान के चमत्कार हैं, जिन्हें आत्मसात् करते-करते भौतिकवादी ऊब चुके हैं। भौतिक रूप से संपन्न मानव अब अध्यात्म हेतु भटक रहा है। आज की भौतिक उपलब्धियाँ हमारे मन को शांति प्रदान करने में अक्षम साबित हुई हैं। मन की शांति अध्यात्म की ओर मुड़ने के बाद ही प्राप्त हो सकती है। विज्ञान की उपलब्धियों के साथ यदि अध्यात्म का सामंजस्य हो जाता है तो संपूर्ण मानव जाति का कल्याण हो जाएगा।
जीवन का परम उद्देष्य
आध्यात्मिक आनंद दिखावेरहित परोपकार, त्याग, प्यार एवं करुणा के भावों से ही प्राप्त किया जा सकता है। वर्तमान समय में आध्यात्मिक क्रांति अपने अवसर की प्रतीक्षा में है। जब तक यह क्रांति नहीं होती, तब तक परिवर्तन संभव नहीं है। अतः प्रकृति एवं मानव की समस्त ऊर्जा का उपयोग करने के लिए अध्यात्म एवं विज्ञान का सामंजस्य सुखद होगा। भौतिक संसाधनों के सदुपयोग एवं सुनियोजन में ही विज्ञान की उपादेयता है। इससे हमारा दैहिक जीवन स्वस्थ एवं पुष्ट होता है। स्वस्थ शरीर में स्वच्छ मन, निर्मल भाव का विकास संभव है। मन एवं भाव का परिष्कार ही अध्यात्म है। इस प्रकार विज्ञान से अध्यात्म की ओर की यात्रा सहज-सरल हो जाती है।