पंचतत्व आखिर है क्या
हमारा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है शायद जो भी सनातन धर्म से हिंदू धर्म से जुड़े हुए हैं वह सभी इस बात को जानते हैं अगर हम में से कुछ लोगों को याद हो कुछ समय पहले तक जो हमारे वैद्य हुआ करते थे वह सिर्फ नाड़ी देखकर अनुमान लगा लेते थे कि रोगी को कौन सा रोग है अब इसमें थोड़ी गहराई से चलते हैं यह कैसे होता था इसके लिए आध्यात्मिक रूप से अपने शरीर को जानना जरूरी है
हमारे शरीर की आध्यात्मिक संरचना
हमारे शरीर में हमारे ऋषि-मुनियों या उस समय के वैज्ञानिक कहे तो ज्यादा अच्छा रहेगा, उनके अनुसार हमारे शरीर में सात एनर्जी सेंटर हैं जिनमें से पांच हमारे भौतिक शरीर से संबंधित है अब इनके बारे में जानते हैं
सबसे पहला होता है मूलाधार चक्र: यह बिल्कुल गोदा द्वार के नीचे स्थित माना जाता है
यह वह ऊर्जा केंद्र है जो पृथ्वी तत्व से संबंधित है जिसमें कि हमें भारीपन हल्का पन इस तरह की प्रतिक्रियाएं शरीर में महसूस होती हैं पुराने समय में इसी ऊर्जा केंद्र पर केंद्रित होकर लोग हवा में उड़ने की शक्ति का उपयोग किया करते थे चलें भौतिकता पर आते हैं यह केंद्र हमारी त्वचा हमारी हड्डियां इन सब पर प्रभाव डालता है
अब दूसरे चक्कर पर आते हैं जिसका नाम है स्वाधिष्ठान इसका स्थान हमारे लिंग या योनि के बिल्कुल पीछे की तरफ होता है
यह वह चक्र है जो जल तत्व से संबंधित है इसमें जल तत्व की प्रधानता है आध्यात्मिकता और इन एनर्जी सेंटर्स की शक्तियों का ज्यादा वर्णन करते हुए अभी हम सिर्फ पंच तत्वों पर ध्यान देंगे तो यह जल प्रधान हैं वैसे यह हमारी वासना से संबंधित शक्तियों को निर्धारित करता है यह हमारे जननांगों प्रजनन क्रिया इन सब में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
इससे आगे मणिपुर चक्र का स्थान आता है जो बिल्कुल पेट के स्थान पर है
यह चक्र अग्नि तत्व प्रधान होता है आपके शरीर में जो भी गर्मी या सर्दी की प्रक्रिया होती है वह सब इसी चक्कर के कारण होती है, यह चक्कर हमारे पाचन तंत्र और लीवर को कंट्रोल करता है
इससे आगे अनाहत चक्र का स्थान आता है जो बिल्कुल हृदय के स्थान के पास है
यह ऊर्जा केंद्र हमारी हृदय की भावनाओं को नियंत्रित करता है उत्तेजना भय इस तरह के संस्कार यहीं से उद्धृत होते हैं यह हमारे हृदय से संबंधित है इसमें वायु तत्व की प्रधानता है
इसके आगे विशुद्धि चक्र आता है जिसका स्थान बिल्कुल गर्दन पर होता है
इसमें आकाश तत्व की प्रधानता होती है थायराइड और अन्य प्रकार की गले से संबंधित प्रक्रियाओं को यह नियंत्रित करता है
इस तरह यह पांचों तत्व हमारे पूर्ण शरीर को नियंत्रित करते हैं अब आप समझिए कि हम इन पांचों तत्वों से निरोग कैसे रह सकते हैं
जैसा कि मैंने पहले बताया था कि
हमारे वैद्य पता लगा लिया करते थे हमारे रोग का
क्योंकि यह सारे एनर्जी सेंटर्स सारे चक्र सिर्फ एक नारी में विद्यमान है जिसे सुषुम्ना बोला जाता है सुषुम्ना नाड़ी में जब हमारी प्राण वायु प्रवाहित होती है तो इन चक्रों में घर्षण करके निकलती है और हर एनर्जी सेंटर से हर चक्र से एक निश्चित तरह की आवाज का उद्दीपन होता है जिसको कि आप कुछ महत्वपूर्ण अभ्यास ओं के बाद नाड़ी में महसूस कर सकते हैं सुन सकते हैं जैसा कि हमारे वैद्य किया करते थे अब क्योंकि उन्हें अभ्यास था कि कौन से एनर्जी सेंटर से किस तरह की आवाज निकलने चाहिए और वैसी आवाज नहीं निकल रही है तो जिस भी एनर्जी सेंटर में आवाज में भिन्नता होती थी वह वैद्य उसी तत्व से संबंधित जड़ी बूटी मिलाकर रोगी को सेवन के लिए दे देते थे जिससे कि मरीज स्वस्थ हो जाता था जो कि शायद आज का चिकित्सा विज्ञान नहीं समझ पा रहा है
अब शरीर को स्वस्थ करने की प्रक्रिया मैं योग कैसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ लोग ध्यान और प्राणायाम को भी निरोग रहने का तरीका बताते हैं तो समझें यह भी ठीक वही काम करता है जो औषधि करती है जब आप प्राणायाम या ध्यान करते हैं तो आपकी प्राणवायु का पूरा केंद्रीकरण सुषुम्ना के अंदर होता है और जब सुषुम्ना में प्राण वायु प्रवाहित होती है तो इन सारे एनर्जी सेंटर्स की स्वच्छता की प्रक्रिया शुरू हो जाती और जैसे-जैसे आप करते हैं यह चक्र शुद्ध होते चले जाते हैं और आपका शरीर पूर्णतया निरोगी होता चला जाता है
यह एक छोटा सा लेख सिर्फ पांच तत्वों के बारे में है बाकी हमारा आपसे निवेदन है कि अगर अपने शरीर को मन को और आत्मा को स्वच्छ बनाकर चरम पर पहुंचना चाहते हैं तो अपने सनातन धर्म के अध्यात्म को समझने का प्रयास करें
जय श्री राम
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