ओ३म् (३) सनातन धर्म की आत्मा है। यह एकाकी शब्द उस अनादि ध्वनि की प्रतिध्वनि है जो सृष्टि के
निर्माण के समय प्रतिध्वनित हुई थी। इस कारण इसे शब्द ब्रह्म भी कहा गया है। ब्रह्मांड के निर्माण के समय जो
ध्वनि गुंजित हुई थी, ओ३म् की ध्वनि उस गूँज के निकटतम है। जब कोई व्यक्ति एकाग्र मन से इस शब्द का सतत
उच्चारण करता है तो इसकी प्रतिध्वनि की गूँज का स्पंदन उस मनुष्य के शरीर के चारों ओर एक वर्तुल घेरा बना
देता है, जिसके फलस्वरूप उस व्यक्ति पर अनुकूल आध्यात्मिक प्रभाव पड़ता है। इसीलिए वैदिक मंत्रों का पहला
अक्षर या शब्द ‘ओ३म्’ से प्रारंभ होता है। इस शब्द के उच्चारण से लयबद्ध तरंग निकलती हैं, जिनमें सृजन शक्ति
होती है और ये मनुष्य को रचनात्मक बनाती हैं। यही कारण है कि अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान में लोग इसका
उच्चार कर रहे हैं।
‘ॐ’ एक एकाक्षर मंत्र है, जिसके पीछे शाब्दिक शक्ति (Acoustic) का विज्ञान है। वैज्ञानिक भी अब इस बात
की पुष्टि करते हैं कि संसार की सृष्टि के समय एक भीषण ध्वनि पैदा हुई थी, जिसे वे अपनी आधुनिक भाषा में
‘बिग-बंग’ (Big bang) के नाम से जानते हैं। भारत के मनीषियों ने इस अनादि शब्द की प्रतिध्वनि हजारों वर्षों पूर्व
अपनी गृढ़ ध्यानावस्था में सुनी थी, जिसे उन्होंने बाद में समाज के लोगों के कल्याणार्थ मंत्र के रूप में दे दिया।
यीं तो ओ३म् शब्द की व्याख्या में बहुत कुछ और लिखा जा सकता है, पर इस शब्द के पीछे जो वैज्ञानिक सत्य
व तथ्य है, मात्र उसका हो यहाँ वर्णन किया गया है।